Tuesday 23 January 2018

पहले तो आवाज़ लगानी पड़ती हैं

ग़ज़ल -

पहले  तो   आवाज़  लगानी   पड़ती  हैं
धीरे    धीरे     बात   बढ़ानी   पड़ती   हैं

दिल  तो  हम  ले  लेते    हैं   नादानी  में
अरसे तक फिर किश्त चुकानी पड़ती है

ये वो शै हैं  जो कर  सकती  हैं  पागल 
उल्फ़त  मेरी  जान!  छुपानी  पड़ती हैं

वस्ल का ये  हैं  कुछ माहों का है महमाँ
याद  तो   सारी  उम्र  निभानी  पड़ती हैं

क्या समझे हो ? यूँ हासिल हो जाएगा !
इश्क़  में  पूरी  जान  लगानी पड़ती हैं

मन  में  रखने  से   हो  जाती  हैं हावी 
दहशत आख़िरकार  जतानी पड़ती हैं

दिन का क्या है  कट जाता है मस्ती में
तन्हाई   में   रात   बितानी   पड़ती  हैं

जब  सर  के  ऊपर  हो  जाता हैं पानी
तब अपनी  औकात दिखानी पड़ती हैं

घर  का ज़िम्मा आ जाता हैं  काँधों पर
अरमानों  को  लाग  लगानी  पड़ती हैं

अपनी  पीड़ा लिखना   ग़ज़लों  में  यानी
खुद  अपनी  ही  लाश  उठानी  पड़ती हैं

सच बोला जाता हैं केवल इक हद तक
उसके बाद तो  बात  बनानी  पड़ती  हैं

@ दुर्गेश 💝

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उल्फ़त - प्यार / मोहब्बत
  वस्ल - मिलन की स्थिति

जब सहरा की धूल उड़ाने लगाने लगता हूँ

जब  सहरा  की  धूल  उड़ाने लगता हूँ
माज़ी   की   तस्वीर  बनाने  लगता  हूँ

रफ़्ता  रफ़्ता  दिल रुसवा  हो जाता हैं
होले  होले  हिज्र  निभाने   लगता   हूँ

मेरे   तो   पाँओं    में   केवल  कांटे  हैं
राहों  में  पर  फूल  बिछाने  लगता  हूँ

हाँ  वो  मेरी  ख़ामोशी  का  हासिल  हैं
अक्सर जिस पर शे'र सुनाने लगता हूँ

आँगन  में  इक  बूढ़ी  रोती  रहती  हैं
बच्चों  को  आवाज  लगाने लगता हूँ

सब   मेरे    बाजू   में    बैठें   सुनते  हैं *
जब  विरसे  के नाम  गिनाने लगता हूँ

उर्दू  वालो  की  अलबेली महफ़िल में
मैं  हिंदी  के   गीत  सुनाने  लगता  हूँ

-दुर्गेश

माज़ी - भूतकाल
रफ़्ता रफ़्ता - धीरे धीरे
हिज्र - विरह / जुदाई
विरसा - वसीयत

Wednesday 30 August 2017

ग़ज़ल


किस किस ने यह सोचा होगा ?
ये   भी   ग़ज़लें  कहता  होगा

दस  घण्टे  की  ड्यूटी   करके
फिर  ग़ालिब को  पढ़ता होगा

मिट्टी   की   खुशबू  लेकर  के
मन  ही  मन  में  हँसता  होगा

बाहर    बाहर   हँसने    वाला
अंदर     अंदर    टूटा    होगा

हीरो    जैसा    दिखने   वाला
लड़का क्या-क्या सहता होगा

एक सयानी  लड़की  हैं  बस
उसको  पागल  करता  होगा

दस  दस के कमरे में हर दिन
सँग  उसके  क्या  होता होगा ?

तुमको  कुछ  मालूम नही  हैं
कैसे   तनहा    सोता    होगा

-दुर्गेश

30/08/2017

Monday 12 June 2017

बेटी के नाम खत


प्यारी बेटी,
तुम्हारा होने वाला पिता अभी महज़ 20 साल का हैं, मग़र !


अभी से वो सुनता हैं तुम्हारी किलकारियां, टहलते हुए
वो देखता हैं तुम्हारे नन्हे से कदम जमीं पर सरकते हुए
वो महसूस करता हैं तुम्हारी नींद ,भूख और हर अभिलाषा
वो समझता हैं  तुम्हारी, तोतले पन वाली प्यार भरी भाषा ।

मेरी गुड़िया,
अग़र हो सके  तो आना,  गुज़ारिश हैं ये
मेरी माँ, तुम्हारी दादी की ख्वाहिश है ये
घर की पहली किलकारी तुम्हारी गूंजे
हंसने की आवाज  प्यारी तुम्हारी गूंजे ।

मेरे बच्चे,
जरूर आना की मुझे चाहिए

जश्न  मनाने  का एक कारण
प्यार जताने  का एक कारण
खिलखिलाने का एक कारण
पूण्य  कमाने का एक कारण ।

अपने  बुढ़ापे  में एक दोस्त
अपनी गरीबी  में एक दोस्त
असहाय होने पर एक दोस्त
अपनी बीमारी में एक दोस्त ।

जो कदापि संभव नही के एक पुत्र हो ।

तो मेरी ख्वाहिश की माँ,
तुम जनना एक नन्ही सी तितली को की

तुम्हारे भावी पति की पहली मुराद है ये
तुम्हारे  माथे  के  सिंदूर  का ख्वाब हैं ये
हमारे आंगन  में उछले, कूदे, उधम करें
ईश्वर हमे बेटी दे की चलो ये हवन करें ।।



प्रेम सहित तुम्हारे इंतज़ार में

                                    तुम्हारा भावी पिता
                                    - दुर्गेश

Tuesday 21 February 2017

ग़ज़ल

दावा    ये  हैं  की  शातिर हैं हम
सच तो ये  हैं  की  शाइर  हैं हम

चारागर  से   दुरुस्त   ना  होगा
मसला ये हैं की काफिर  हैं हम

खुद पे खुलते ही तो नइ हम पर
पूरे  जग  पे  तो  जाहिर  हैं हम

यूँ  तो  मौजुद  हूँ  हर  ज़ेहन में
लेकिन खुद से तो बाहिर हैं हम

                  @ दुर्गेश लौहार

गाँव

गांवा वाळी  हगळी  बातां  जिंदाबाद
हंसे  रुकड़ा आतां  जातां   जिंदाबाद

काळो  पीळो धूळो  रातों  काशाखान
खेतां  का  सब  ढेपा  भाटां जिंदाबाद

हूक्की हूक्की फाइव स्टारा की लागेन
घर  को छूल्लो औरी रोट्या जिंदाबाद

न्यारा  न्यारा  मनक न ये हैं भेळाभेळ
मनका  करता ढांडा चोपा  जिंदाबाद

कीको  कीमू  केणो कइ  यो देवे ज्ञान
घर  का  हारा  भूड्डा  ठाडा  जिंदाबाद

                            @ दुर्गेश लौहार